*🙏🚩राजकेशरिया🚩🙏*
लोग संसार में अच्छे काम भी करते हैं और बुरे काम भी करते हैं । जब उनका काम पूरा हो जाता है , तो बड़े खुश होते हैं । चाहे वह अच्छा काम हो चाहे बुरा हो, बस काम पूरा हो जाना चाहिए । यदि काम पूरा हो गया तो यह समझते हैं कि हमारा कार्य सफल हो गया।
परंतु अनेक बार ऐसा भी होता है कि काम तो पूरा हो गया , पर वह सफल नहीं हुआ, उसे सफलता नहीं मानना चाहिए ।
क्या कारण ? कारण यह है कि *अच्छे कर्म का अच्छा फल मिलता है , बुरे कर्म का बुरा फल मिलता है । अब आप अच्छा फल तो भोगना चाहते हैं , बुरा फल भोगना चाहते नहीं । जो फल आप चाहते हैं , यदि वही फल मिले, तब ही अपने कार्य को सफल मानना चाहिए । जिस फल को आप चाहते नहीं और वह न चाहते हुए भी भोगना पड़े, तो सफलता कहां हुई ?*
यह फल तो अनिच्छित है । इसलिए बुरे कर्म के संपन्न होने पर सफलता नहीं माननी चाहिए ।
तो सार यह हुआ कि यदि आप का कार्य संपन्न होने पर , आपको आनंद उत्साह निर्भयता शांति आदि की अनुभूतियां होती हैं, तब तो आपका कार्य सफल है , अर्थात सुखदायक है।
यदि काम पूरा होने के बाद भी मन में भय शंका लज्जा ग्लानि इत्यादि की अनुभूति होती है , तो समझना चाहिए कि यह कार्य सफल नहीं हुआ। इससे हमें सुख फल या इच्छित फल नहीं मिलेगा । जब इच्छित फल ना मिले , तो वह सफलता नहीं है -
*🚩राजकेशरिया🚩*
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